Saturday, December 4, 2010

अथ वाद-विवाद मंच कथा




बहुत दिनों से परेशान था मैं

इसलिए नहीं कि गुड्डू कि माँ मायके से लौट आई है

उसका आना तो शगुन है

वो है तो घर में फागुन है

परेशानी तो मुझे है उन लोगों से

जो सुबह सुबह उठते ही अपनी-अपनी अनामिका पर

सरसों का तेल लगा लेते हैं और निकल पड़ते हैं शिकार ढूंढने

जैसे ही कोई फंसता है इनके जाल में

उसे इतनी ऊँगली करते हैं, इतनी ऊँगली करते हैं

कि बेचारा दर्द से कराह उठता है


उनका जवाब जब मैं अपने मुख्य ब्लॉग पर देता हूँ तो सम्भ्रान्त लोग

आपत्ति करते हैं इसलिए ये एक अलग ब्लॉग बना दिया है

उनसे निपटने के लिए


इस मंच के सारे द्वार सभी के लिए खुले हैं

यहाँ आप नि:संकोच अपना विरोध,आपत्ति, मतभेद इत्यादि व्यक्त करके

हमें अनुग्रहीत कर सकते हैं ख्याल इतना रहे कि गन्दी गालियों के

लिए यहाँ कोई जगह नहीं है


-अलबेला खत्री


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4 comments:

  1. अरे यह क्या, ब्लॉग नया और चेहरा पुराना, अब कैसे कहूं कि ब्लॉगजगत में आपका स्वागत है .......ये क्या लेकर आ गए आप वाद-विवाद मंच ?
    अच्छा लगा यह नया प्रयोग देखकर , बधाईयाँ !

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  2. अच्छा लगा यह नया प्रयोग देखकर , बधाईयाँ !

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  3. स्वागत है अखाड़े में ... सभी लंगोटबंधों का... हम तो दर्शक है... देखते हैं आगे आगे होता क्या है :)

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  4. वाह!..बधाई!...अब तो वाद-विवाद की सुंदर आतिशबाजी देखने को मिलेगी!

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